तुम्हारे प्रेम के लिए, मैं इक राग बन जाऊं।
तुम कितना भी विभत्स करो, मैं अनुराग बन जाऊं।
पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
तुम्हारे लिए ही लिख रहा हूं ,प्रेम की कविता।
तुम्हारे प्रेम के लिए , प्रेम का बाग बन जाऊं।
तुम्हे लगता है यूं तुम बिन,उदास रहता हूं।
अब मानो अगर जो तुम, मैं देवदास रहता हूं।
पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
यही पीड़ा है मेरे दिल की, सुन ले प्रिये।
मै हर वक्त विरह का, अहसास करता हूं।
लड़ाई लड रहा हूं मैं अपने प्यार के लिए।
कभी कोई वकील न मिला, अधिकार के लिए।
पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
कभी न न्याय मिल पाया है , तेरे प्रेम में सनम।
भटक गये हैं जीवन में, कहानी हो गई खतम।


Anurag Maurya

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