Read A Poetry - We are Multilingual Publishing Website, Currently Publishing in Sanskrit, Hindi, English, Gujarati, Bengali, Malayalam, Marathi, Tamil, Telugu, Urdu, Punjabi and Counting . . .
मैं अक्सर उल्टा चलता हूँ उन रास्तों पर जिन्हें मैं पहचानता हूँ, पढ़े - किताबें . . . गिरता हूँ अपनी मर्ज़ी से उनपर क्योंकि गिरने का परिणाम मै जनता हूँ,
करता हु यही खेल बहुत सी बार , बड़ा नहीं मैं खुद को छोटा मानता हूँ। पढ़े - रुकना कभी आता नहीं . . . पर ये राहें गवाह हैं, मेरी चोट और चाहत की, मैं इन्ही को अपना गुरु मानता हूँ।
सुना था कही, हैं चूहेदानी सा जीवन, पर इसी में डर को पलता हूँ। पढ़े - तज़ुर्बे ना पूछो ज़िंदगी . . . ये सिर्फ मैं हूँ जो टूटे टुकड़ों को भी संभलता हूँ😅।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें