मैं अक्सर उल्टा चलता हूँ
उन रास्तों पर जिन्हें मैं पहचानता हूँ,
पढ़े - किताबें . . .
गिरता हूँ अपनी मर्ज़ी से उनपर
क्योंकि गिरने का परिणाम मै जनता हूँ,

करता हु यही खेल बहुत सी बार ,
बड़ा नहीं मैं खुद को छोटा मानता हूँ।
पढ़े - रुकना कभी आता नहीं . . .
पर ये राहें गवाह हैं, मेरी चोट और चाहत की,
मैं इन्ही को अपना गुरु मानता हूँ।

सुना था कही, हैं चूहेदानी सा जीवन,
पर इसी में डर को पलता हूँ।
पढ़े - तज़ुर्बे ना पूछो ज़िंदगी . . .
ये सिर्फ मैं हूँ जो टूटे टुकड़ों को भी संभलता हूँ😅।

Hardik Gandhi

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk