जीवन मे प्रेम की ,
शुरू हुयी हैं तडपन,
इस नयी नवेली उमंग का ,
नित्य देखूं मैं तो दर्पन।
पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
सावन की घटा ,जब निकल  गयी,
बूँदे पानी की, फिसल गयी।

मौसम का मिजाज ,
थोड़ा बदल गया।
हर तरफ प्रेम है ,
छा गया।
पढ़े - प्रेम-विरह . . .
दोनों  ने  एक दूजे  को देखा,
तब अम्बर मे छा  गयी इन्द्र धनुष की रेखा।

दोनों के नयन से नयन मिले ,
जिसे देख उपवन के सुमन खिले।
पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
चेहरे मे था
एक अदम्य तेज,
जैसे प्रेम की,
बिछी हुयी  हो सेज।

उस अद्भुत वातावरण मे ,
उन दोनों के मिलन मे।
प्रकृत के इस शरन मे,
दो दिलो के प्रेम करन  मे।
पढ़े - प्रेम-विरह . . .
एक अखण्ड  प्रेम- ज्योति जलाई थी ,
उनके इस प्रेम प्रसंग मे ,
प्रकृति भी मिलने आयी थी।

अब  जब जवां हुआ  है प्यार यहां ,
न रातो का चैन ,  न दिन मे  करार कहा।
पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
प्रेम का ये कैसा है  मंजर, जैसे कुमुदिनी से ,
प्रेम करत है भ्रमर।


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