हे भारत के भाग्य विधाता,
संविधान के तुम ज्ञाता।
जब जाति-पाति की भड़क रही थी ज्वाला।
तुमने ही भारत को  संभाला।
पढ़े - ये शहर, मुझे राश नहीं आया . . .
न था,
गरीब के मुँह मे निवाला,
जब था,
छुआ छूत का बोल-बाला।

तुमने संविधान को बनाया भाला।
हे भारत के भाग्य विधाता,
संविधान के तुम ज्ञाता।
बुद्ध धम्म अपनाके तुमने,
पढ़े - प्रेम-विरह . . .
बुद्ध संदेश को किया नमन।
मध्यम मार्ग ही उचित है प्रियो,
यही है दुख का,
सफल मरहम।

करो अमन की बात तुम,
नहीं करो प्रतिघात तुम।
बुद्ध के पंचशील अपनाकर,
ध्यान शिक्षा मे लगाकर।
पढ़े - प्रेम का प्राकृतिक चित्रण . . .
अपने ज्ञान से,
लाचार जनता को अधिकार सिखाता।
हे भारत के भाग्य विधाता,
संविधान के तुम ज्ञाता।

जब जनता अनाथ हो गयी,
कुप्रथाये साक्षात हो गयी।
तब गरीब का बन सहारा,
संविधान लिख सभी के जीवन  को संवारा।
पढ़े - सुना है गैर के वो प्रेम में, बर्बाद रहता है . . .
भारत से  कुरीतियो के बोझ को मिटाता।
हे भारत के भाग्य विधाता,
संविधान के तुम ज्ञाता।

Anurag Maurya

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