सुकून की चाह में हम ना जाने किस राह पे आ गए,
सोचा था उस से कई आगे आ गए।

सुकून का तो कोई हिसाब नहीं पर कुछ के मन से उतर  गए।
और कुछ के दिल में छा गई।।
कुछ छुट गया पीछे, कुछ आगे अभी बाकी है।
पढ़े - कसूर ए जिंदगी . . .
ना समय रुका ना समस्या ये तो छोटी सी बूँद है मेरे दोस्त
ये तो जज़्बात थे अल्फ़ाज़ की माला के
खेल की चाल अभी बाकी है।

क्या हुआ एक प्यादा हार के
सतरंज का पुरा खेल अभी बाकी है।


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