बेवजह तो  छत  पर न टहलती वो लड़की
आंखों ही आंखों में कुछ कहती वो लड़की
नजरें  चुराकर  है  वो  नज़रें  मिलाती
मोहब्बत में ग़ज़ब है करती वो लड़की

पढ़े - नारी शक्ति . . .

है  मोहल्ले  की सबसे शोख़ हसीना वह
मेरी  नज़रों  से  कैसे  बचती वो लड़की
शेक्सपीयर   की   बातें  न  किताबी  जा़दें
देखो! अब याद मुझे बस रहती वो लड़की

पढ़े - इश्क का रोजा टूट गया . . .

नाज़ोअदा  है  ऐसी मेघ बाहों में भरले; पर
खुद में जो सिमटे मुझसी लगती वो लड़की
क्या  नकशः बनाया है उसको संवारा है
मेरी ग़ज़लों में खुद को पढ़ती वो लड़की

पढ़े - बेवक़्त कमरे में आना . . .
इक  शाइर  ने  बेटी  का  नाम ग़ज़ल रक्खा
अब तो  हर मिसरे में रूप गढ़ती वो लड़की



Keshav Kaushik

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