दिव्या के हाथों से बहुत सारा बहता खून देखकर हास्टल की वार्डन निभा बहुत परेशान हो गयी थी ।
उसके सामने ही सुसाइड नोट पड़ा हुआ था ।
सारी लड़कियाँ डर से रोने लगी थी । निभा ने एम्बुलेंस बुलाकर दिव्या को हास्पिटल में एडमिट कराया ।
बड़ी मुश्किल से दिव्या की जान बची ।
निभा ने सभी लड़कियों को शांत रहने के लिए कहा था ।
कल होके दिव्या हॉस्टल आ गयी । हास्पिटल से छुट्टी मिल गयी थी । थोड़ी कमजोरी हो गई थी ।
निभा ने प्यार से दिव्या के सर पर हाथ रखा तो दिव्या ने आंखें दी -" दिव्या बेटा ये क्या बचपना है ऐसी हरकत आपको शोभा नहीं देता"
निभा ने कहा तो दिव्या ने बेबसी से निभा की तरफ़ देखा । रात के नौ बजे रह थे ।
दिव्या की आँखों से अश्रु धारा बह निकली ।
"ना बेटा ना क्या हुआ अगर प्यार में आपको धोखा मिला तो क्या हुआ? आप अपने-आप से प्यार करो ।
इस दुनिया में कोई किसी से प्यार नहीं करता है ।
सभी को अपने मतलब से ही प्यार है बस"
दिव्या एक हसीं सपना लेकर दिल्ली आई थी ।
सोचा था कि आत्मनिर्भर बनूंगी इस समाज की बुराइयाँ मिटाऊंगी।
 मगर उसके सारे सपने ध्वस्त हो गए । ज़िंदगी ने ऐसा मोड़ लिया कि वह खुद से ही हार गयी ।
दिल्ली आने के एक साल बाद ही दिव्या की जिंदगी में सुभाष किसी सुगंधित पुष्प की तरह आकर खुशबू बिखेरने लगा । दिव्या हवाओं में उड़ने लगी थी ।
ये दुनिया उसे और ज्यादा खूबसूरत लगने लगा था ।
सुभाष एक जर्नलिस्ट था सौम्य छवि और सादा तबियत देखकर दिव्या उस पर रीझ गयी ।
दोनों प्रेमी युगल प्रेम की धुन पर थिरकने लगे थे ।

सुभाष -"दिव्या तू ही मेरी जीवनसंगिनी हो तेरे बिन ये जीवन फीका है, मैं अपने-आप को बहुत खुशनसीब समझता हूं तुझे पाकर" सुभाष ने दिव्या के गले में अपने दोनों हाथ डालकर कहा ।
दिव्या -"सुभाष आपको पाकर तो मैं धन्य हो गई, ऐसा लगता है जैसे कि मेरा जीवन सफल हो गया है"
"सुभाष हमदोनों मिलकर समाज की बुराइयों से लड़ेंगे और समाज की सेवा करेंगे" दिव्या ने सुभाष के कंधे पर सर टिकाते हुए कहा ।
"हां दिव्या जरूर" सुभाष ने कहा
दोनों ही शाम के समय पार्क में बैठकर प्रेम की दुनिया में खोए थे । अक्सर दिव्या और सुभाष मिला करते थे । धीरे-धीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा ।
दिव्या का अब सुभाष के बिना जीना मुश्किल हो गया था । इसलिए सुभाष पर शादी का दवाब डालने लगी थी ।
दो महीने बाद दिव्या का फाइनल परीक्षा देने वाली थी । इसलिए परीक्षा की तैयारियों में जुट गयी ।
सुभाष भी कुछ दिनों के लिए अपने घर चला गया था ।सुभाष ने दो दिनों से कोई फोन नहीं किया था ।
उसको घर गए एक सप्ताह से ज्यादा हो गया था ।
इसलिए दिव्या बेचैन रहने लगी थी आखिर सुभाष फोन क्यों नहीं करता है? किसी तरह दिव्या पढ़ने की कोशिश कर रही थी क्योंकि परीक्षा थी इसलिए मजबूरी थी । जबकि दिव्या सुभाष की याद में बहुत बार रोयी थी उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था आज से पहले तो कभी भी सुभाष ने ऐसा नहीं किया था । एक साल होने को थे उसके रिश्ते को । आखिरकार बड़े इन्तज़ार के बाद सुभाष का फोन
 आ ही गया । स्क्रीन पर सुभाष का नाम देखकर दिव्या ने बड़ी बेताबी के साथ फोन कान में लगाया ।
हैलो सुभाष -"हैलो दिव्या" सुभाष के हैलो कहते ही दिव्या ने शिकायत का पिटारा खोल दिया ।
"सुभाष आप पागल हो गए हो क्या? मेरी जान लेनी थी तो ले लेते, मगर इस कदर बेरूखी कि मेरा हाल तक जानने की कोशिश नहीं की"

" मैं तो विरह अग्नि में जलती रही हूं आपने मेरे बिना कैसे जी लिया जबकि आप तो कहा करते थे कि मैं तुम्हारे बिना इक पल भी नहीं जी सकता ।"
"सुभाष आई लव यू आप जल्दी से दिल्ली आ जाओ वर्ना मैं मर जाऊंगी मुझसे जिया नहीं जा रहा"
फिर फोन पर ही सुभाष को चुंबन देने लगी ।
एक ही सांस में बिना रूके दिव्या ने इतना कुछ बोल डाला और सुभाष चुपचाप सुनता रहा ।
"दिव्या मुझे माफ़ कर दो अब मैं तुम्हारा सुभाष नहीं
मैंने शादी कर ली है" सुभाष ने सिसकते हुए कहा ।
"क्या" जोर से चीखी दिव्या और उसके कान से मोबाइल फोन गिरकर फर्श पर गिर पड़ा ।
शेष भाग अगले अंक में

Radha Yshi

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