दिल से दिल का तार जुड़ा जो
हम परवाने हो गए


इश्क में हम ग़ालिब
हम उसके दीवाने हो गए

पढ़े - ये बात चित तो बहाना है . . .

जो दुआ मांगी थी रब से
उन सभी दुआ में वो शमिल हो गए

इश्क की दहलीज पे
हम भी दस्तक दे गए

पढ़े - तुमसे मिलना तो था . . .

मोहब्ब्त की बाजार में
अब हम शामिल हो गए

उस हसीना के कायल हो गए
अब उसके बारे में क्या कहूँ

पढ़े - दिल ये हमारा क्यों जलता है . . .

जिसे देख चाँद भी सरमा के
कहीं छुप गया।

  Shubham Poddar

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