मेरे कब्र के पास तुम न आओ,
उठ जाऊंगा फिर से हाथ न लगाओ,
अब वहीँ पे रुक जाओ,
तुम आगे कदम न बढ़ाओ
पुरानी बातें फिर याद न दिलाओ,
तुम आसुंओं का समन्दर न बहाओ,
छु कर मेरे जिस्म को
तुम फिर से आगे बात न बढ़ाओ,
मोहब्ब्त का फिर से ख्वाब न दिखाओ,
रुक जाओ वहीँ पे, 
फिर से मोहब्ब्त की कोई रस्म न निभाओ,
रुक जाओ ठहर जाओ,
तुम फिर से मेरे करीब न आओ,
जन्नत का ख्वाब देखा था,
खुदा ने जन्नत मुझें सौपा है
पर जन्नत भी तुझ बिन रास नही आती,
शुभम पोद्दार द्वारा लिखित - माँ बहुत रोई थी.
यहाँ तेरी मोहब्ब्त की बर्षात नही आती,
पर मुझे तेरी अब फिक्र नही,
नही करना चाहता अब मैं जिक्र तेरी,
मौत मिली है तो इसे भी जी लेने दो
तेरी चुन्नी ना सही
कम से कम मौत का चादर ओढ़ लेने दो।

Shubham Poddar

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