आता नहीं साथियों मुझसे हास्य लिखना।
पढ़कर इसे श्रीमान,आप कहीं हँस न देना।।

जब आप अपने बराबर वाले के यहाँ जायें।
पियो उसके घर आराम से प्रेम पूर्वक चाय।।

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आप अपने से कम स्तर वाले के यहाँ जायें।
वहाँ चाय में दूध, पत्ती तथा प्रेम भरपूर पायें।।

अपने से ऊपर के स्तर वाले यहाँ आप जायें।
मिलकर उससे आप अत्यन्त प्रसन्न हो जाये।।

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मिलेगी नहीं उसके यहाँ आपको पीने को चाय।
वहाँ अगर पानी मिले,पीकर ही कृतार्थ हो जायें।।

पूछ ले भूलकर अगर वह आपसे, पीने को चाय।
कहता व्यथित हृदय, कह न देना पीने को चाय।।
आपने गर कहा हाँ घन्टों करना पडेगा इन्तज़ार।
चाय आने की प्रतीक्षा में हुजूर होते रहेंगे बेकरार।।

अन्तहीन प्रतीक्षा के बाद आयेंगे कप छोटे छोटे ।
जितने बड़ों में आपके बच्चे गुड्डे गुड़िया हैं खेलते।।
इन छोटे कपों में भी आयेगी, तली से ऊपर चाय ।
पीकर जिसे आपकी श्रीमान,जिव्हा ही तर हो पाये ।।

रसायनिक विषलेषण से मालूम कर पाओगे चीनी ।
बिना किसी हुज्जत के ही पड़ेगी चाय आपको पीनी।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव“व्यथित हृदय मुरादावादी” स्वरचित

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