दिल से निकली वो बात सुनने दो
चुप रहो, खमोशी के राज़ खुलने दो

खुद को

दिखादो आज वफ़ा-ऐ-मुहोब्बत
उल्फत के शोलो से आग जलने दो

काबिलियत की नुमाईश

क्या बोझ है ? पलके क्यों ज़ुकी है ?
थोड़ा आंखों का भी दीदार होने दो

अधूरी ख्वाहिशें

शमा नही की जलता रहूंगा रातभर
सपने बिखरेंगे थोडी नींद भी आने दो
आँचल में ही तुम्हारे छाँव कर लूंगा
बस परछाई को अपने पहेलु में रहने दो

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