आज उनके गली से गुजरते हुए,
मन में आया हजारो सवाल,
सोचा एक बार रूबरू होकर,
पूछूँ उनसे बस एक सवाल,

पढ़े - मेरे कब्र के पास 

कि क्या खता हुई थी हमसे,
एक बार बता दो मेरे यार,
पर उस वक्त,
वक्त की हमसे कुछ खास बनती नही थी,

पढ़े - माँ बहुत रोई थी

मेरी किस्मत मेरे साथ नही थी,
दिल में उठी एक बात नई थी,
की कहि उनसे मेरा मिलना उन्हें नासाज न लगे,
मेरे सवालो से उनपे कोई आघात न परे,

पढ़े - ये कुर्सी के दीवाने
यही सोच कर कदमो को हमने रोक लिया,
जो भी सवाल थे मन में,
उसे बटोर कर हमने दिल में रख लिया।
वैसे दोस्ती तो हमारी पक्की थी,
पर उनके दहलीज पर दस्तक देना,
कमबख्त ये हरकत मेरी कहि उन्हें और भी नाराज न कर दे।

Shubham Poddar

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