अब आगे
निकिता की तबियत ठीक हो गयी तो वह घर आ गयी । जीने की लालसा ख़त्म हो चुकी थी ,लेकिन छोटे भाई और छोटी बहन का भविष्य सोचकर मजबूर थी । माता-पिता को जो भी अपमान सहना पड़ा !उसके कारण निकिता इसके लिए खुद को दोषी ठहराकर रोती रही ।
 उस दुख की घड़ी में एक अजनबी ने उसे सहारा दिया । आज भी निकिता अपने कमरे में बंद होकर रो रही थी कि, विराज उससे मिलने आया ।
निकिता के मम्मी पापा ने विराज से विनती की, कि किसी तरह निकिता को समझाए  ।
"अंकल आंटी आपलोगो परेशान मत होइये मैं समझाऊंगा निकिता को"
"लज्जा तो उसे आनी चाहिए जिसने गुनाह किया हो, निकिता तो निर्दोष है उसे शान से जीने का हक है"
विराज ने अंकल आंटी को कहा तो उनलोगों को थोड़ी तसल्ली मिली ।
"निकिता दरवाजा खोलो मैं विराज"
तभी खट से दरवाजा खुला निकिता फिर अंदर जाकर बेड पर बैठ गयी ।
इश्क़ मेरा विकलांग नहीं  - 1   -    इश्क़ मेरा विकलांग नहीं - 2   -   इश्क़ मेरा विकलांग नहीं - 3
"निकिता तेरे साथ जो कुछ भी हुआ है उससे सबक लो हार मत मानो"
"क्योंकि गुनाह तुमने किया ही नहीं तो फिर डरना क्यों?" "जिसने ये गुनाह किया है रोना तो उसे चाहिए, उठो निकिता सामना करो दुनिया का कमजोर मत बनो दुर्गा बनो"
 "तुम अपनी मदद खुद कर सकती हो" विराज ने निकिता को ललकारा ।
निकिता को फिर जोश आया! उसने मन ही मन सोचा कि मैं उस दरिंदे को छोड़ूंगी नहीं ,उसे सलाखों के पीछे पहुंचाकर ही दम लूंगी ।
निकिता ने विराज की तरफ़ देखा । रोई रोई आंखें जिसमें बदले की आग और जमाने की लड़ने की शक्ति विराज को दिखाई दी ।
"निकिता हर कदम पर मैं तेरे साथ हूं मुझसे जो भी बन पड़ेगा मदद करूंगा" "अगर तुम बुरा न मानो तो क्या मेरी दोस्त बन सकती हो?"
विराज ने निकिता की तरफ देखते हुए अपना हाथ उसकी तरफ बढा दिया । निकिता ने कुछ सोचते हुए अपना हाथ विराज के हाथ पर रख दिया ।

दीवानगी का सुरूर - 1  ---  दीवानगी का सुरूर - 2  ---दीवानगी का सुरूर - 3

विराज ने निकिता के आँखों में आए आँसू पोंछ डाले तो निकिता ने मुस्कुरा दिया ।
"ये हुई न बात मेरी प्यारी दोस्त आज के बाद कभी रोना नहीं" विराज ने कहा ।
निकिता की मम्मी ने विराज के लिए चाय लाकर उसके हाथ में थमा दिया । "आंटी चाय बहुत अच्छी बनी है" मुस्कुरा कर तारीफ़ किया विराज ने ।
फिर अंकल से केस के सिलसिले में बात करके विराज घर चला गया ।
निकिता को विराज अपना सा लगा !उसकी बातों से उसके अंदर हालात का सामना करने की हिम्मत आई । किसी तरह एक महीना गुजर गया । विराज के कहने पर निकिता ने फिर से नौकरी कर ली ।
इस बार निकिता ने विराज की मम्मी के ऑफिस में नौकरी कर ली । एडिटर का काम करने लगी निकिता । साथ ही अपने साथ हुए नाइंसाफी का केस भी लड़ने लगी ।
विराज की मम्मी रंभा एक मशहूर राइटर और समाज सेविका थी । औरतों के साथ हुए अन्याय का आंदोलन करती और इन्साफ दिलाती थी ।

दीवानगी का सुरूर - 1  ---  दीवानगी का सुरूर - 2  ---दीवानगी का सुरूर - 3

रंभा ने भी निकिता को जीने का पाठ सिखाया ।
एक दिन निकिता ऑफिस से छुट्टी के बाद घर जा रही थी कि रंभा ने भी कहा "बेटा मुझे वकील से मिलकर तेरे केस की फाइल देनी है"
" तो तेरे घर से होकर ही जाना होगा तू फाइल लाकर मुझे दे देना"
रंभा अपनी गाड़ी में ही निकिता के घर के सामने गाड़ी रोक दी । निकिता गाड़ी से उतरी । मोहल्ले की तीन चार औरतें निकिता को देखकर ताने दे रही थी! "लो देखो कैसा जमाना आ गया इज्ज़त लुट गयी फिर भी बनठन कर गाड़ी में घूमती है" "जरा भी शर्म लिहाज नहीं तभी तो लड़के लड़कियों को लूटते हैं"
" लड़कियाँ ही न्यौता देती है लूटने के लिए तो लड़के बेचारे क्या करे,"
 "कौन रसगुल्ले को भला देखकर छोड़ना चाहेगा" ये सुनकर निकिता की आँखों में आँसू आ गए !निकिता रोते हुए घर जाने लगी कि तभी रंभा गाड़ी से उतरी और चिल्लाकर बोली ।
इश्क़ मेरा विकलांग नहीं  - 1   -    इश्क़ मेरा विकलांग नहीं - 2   -   इश्क़ मेरा विकलांग नहीं - 3
"अपनी बकैती बंद करो डायनों तू सब तो औरत के नाम पर कलंक हो"
 "एक औरत की इज्ज़त लुटती है तो उसपर क्या बीतती है"
 "ये कभी समझ नहीं पाओगी अगर समझती तो कभी ऐसी बातें ही नहीं करती"
"गुनाह जब इसने किया ही नहीं तो शान से क्यों नहीं जी सकती?"
"अरे तुमलोगों को ऐसी लड़की की मदद करनी चाहिए" "उसे आगे बढ़ने का दुनिया से लड़ने की हिम्मत देनी चाहिए"
" ये क्या उसे तो जीते जी मार रही हो"
 "जितना रेप होने पर लड़कियों को दर्द नहीं होता उतना दर्द समाज के ताने सुनकर होता है"
"तुमलोगों की बेटियों के साथ ऐसा होगा तब भी ऐसा ही कहोगी या फिर जीना सिखाओगी"
बहुत ही गुस्से में रंभा बोली तो बोलती ही चली गई ।
घर से फाइल लेकर लौटती निकिता ने रंभा का ये रूप देखकर गर्व महसूस किया और अपने आँसू पोंछ डाले । तीनों औरतें शर्म से पानी-पानी हो गई और हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी ।

Radha Yshi

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