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वो चाँदनी चली गयी,वो रौशनी चली गयी। वो रात-रात न रही,वो मेरे साथ न रही। वो सिरहाने भी न रहे,जो हमे आराम देती थी। वो नींद-नींद न रही,जो ख्वाब देती थी। वो सुकून भी नही मिला, जिसे हम ढूंढते रहे। अब वो बारिष नही होती,जो दिल को भिंगोति थी। चाँद की चकोर भी,अब हमसे दूर चली गयी। ये बदलो के छाँव भी,कहाँ दूर चली गयी। टीम-टिमाते तारे भी,अब मद्धम सी लगती है। उनके संग बिताए पल भी,हमे बहुत याद आती है। मेरे आँसुवो के बून्द भी,अब संगम सी बहती है। उसका जब साथ होता था,हम बड़े मगरूर रहते थे। तेरा यूँ छोर के जाना,हमे अब रास नही आती। हम प्रेम के पंछी न थे,पर दोस्त अच्छे थे। तभी देखा घरी हमने,रात के बज रहे थे बारह, आधी दुनियाँ सो रही थी और हम दोस्ती की स्याही से शब्दों को बुन रहे है।
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