अभी तो हाथ की मेंहंदी भी नही उतरी थी,
उससे पहले ही माँग का सिंदूर हमने धो दिया।
अभी तो पायलों की छन-छनाहट,चूड़ियों की खन-खनाहट दूर तक गूंजी नही थी,
उससे पहले ही चूड़ियों को तोर दिया।
ना जाने क्यूँ अब खुद में ही मैं सिमट के रह गयी हूँ।
साथ जीने मरने की कसम खाई थी,
पल भर में उस कसम को तुमने तोर दिया।
माँग में सिंदूर डाल कर जो रस्म निभायी थी,
उन रस्मो को भी तोर दिया।
कहाँ चले गए तुम हमे अकेला छोर के,
सारे रस्मो और नातो को तोर के,
जाते-जाते अपना दीदार,
एक पल के लिए हमे करा जाते।
हमसे दूर होने से पहले एक बार सीने से हमे लगा जाते।
ठंडक आ जाती कलेजे में,
अगर हमे देख कर एक बार मुस्कुरा दिए होते।


Shubham Pddar

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