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मधुशाला


चलने ही चलने में िकतना जीवन, हाय, िबता डाला! 

'दरू अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,

 िहम्मत हैन बढू ँआगे को साहस हैन िफरुँ पीछे,

 िकंकतव्यिवम र् ूढ़ मुझे कर दरू खड़ी है मधुशाला।।७।

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हरिवंश  राय  बच्चन

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