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मधुशाला

मुख से तूअिवरत कहता जा मधु, मिदरा, मादक हाला, 

हाथों में अनुभव करता जा एक लिलत किल्पत प्याला, 

ध्यान िकए जा मन में  सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का, 

और बढ़ा चल, पिथक, न तुझको दरू लगेगी मधुशाला।।८।

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हरिवंश  राय  बच्चन

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