जुल्फों में सोने दे



जुल्फों में सोने दे - 1  ---  जुल्फों में सोने दे - 2  ---  जुल्फों में सोने दे - 3 ---  जुल्फों में सोने दे - 4

सुहानी की तबियत बहुत खराब थी। किसी तरह चलकर क्लीनिक पर आई थी । अपना नंबर आने पर डाक्टर के केबिन में गई तो सटपटा गई । वो डाक्टर नौजवान था नया नया ही डाक्टर बना था । उसकी भूरी भूरी आँखें सुहानी पर से हट ही नहीं रही थी ।
सुहानी -"डाक्टर साहब मुझे दस दिन से फीवर है "
सुहानी की आवाज सुनकर उसकी तन्द्रा भंग हुई ।
डाक्टर - "और कोई समस्या "
सुहानी -"नहीं बस कमजोरी बहुत लगती है "
डाक्टर ने ब्लड और यूरिन टेस्ट लिखा ,फिर सुहानी टेस्ट कराने लैब चली गई ।
मगर डाक्टर शेखर के हवास पर सुहानी ही छाई रही ।
ऐसा नहीं था कि उन्होंने कभी लड़की देखी ही नहीं!
 बल्कि मेडिकल कॉलेज में तो एक से एक बला की खूबसूरत लड़की थी !
पर किसी को देखकर उनके होश गुम नहीं हुए । जाने क्या बात थी सुहानी में ।

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वैसे सुहानी को ईश्वर ने फुर्सत से रचा था । उसकी आँखे जिसमें प्यार का समुन्दर उफनता था,
 चेहरे की मासूमियत कोई भी देखकर फिदा हो सकता था ।
बहुत ही सादे कपड़े पहनती थी वो, फिर भी चलती-फिरती कयामत लगती थी ।
टेस्ट का रिपोर्ट आया तो डाक्टर ने कहा -" सुहानी आपको टाइफाइड है मैंने दवाई दी है आप टाइम से खाना जल्दी ठीक हो जाओगी !"
सुहानी ने हां में सर हिलाया और चल दी ।
वैसे भी शेखर की निगाहें से उसे अजीब लग रहा था ।
पूरी रास्ते खुद को कोसती रही जाने क्यों इस क्लीनिक में आई डाक्टर से दिखाने ,घर पहुंचकर दवा खाई ।
मम्मी ने पूछा तो सभी बातें बता दी फिर सुहानी लेट गई ।
सुहानी के पापा राजवीर सिंह और मम्मी हिना सिंह थी । राजवीर जी छोटे बिजनेसमैन थे । सुहानी का एक भाई था जो इंजीनियर था ,अपनी पत्नी के साथ अलग रहता था । सुहानी एक अखबार कंपनी में एडिटर का काम करती थी । बहुत ही सादी सोच थी उसकी ।

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उसके आस-पास हमेशा लड़के मंडराते रहते, मगर वह किसी को फटकने नहीं देती । उसने अपने जज्बे को केवल जीवनसाथी के लिए ही छिपा कर रखा था । गैर मर्द पर जज्बे लुटाना उसे पसंद नहीं थी ।
उसके मम्मी-पापा चाहते थे कि ,बेटी के हाथ पीले हो जाए पर ढंग का कोई रिश्ता नहीं मिल रहा था ।
सुहानी की तबियत ठीक हो गई तो ,वो ऑफिस जाने लगी थी । एक दिन वह बस स्टॉप पर खड़ी थी कि, सामने से एक वाइट कार आकर रूक गई ।

उसने कार का शीशा हटाया और आवाज लगाया -"आइये मैं छोड़ देता हूँ आपको "
सुहानी ये देखकर अचंभित रह गयी "इस डाक्टर शेखर को हुआ क्या है? मन ही मन उसने सोचा फिर वो मना कर दी "नहीं मैं खुद चली जाऊँगी आप जाइये "

फिर वो चला गया । सुहानी आधे घंटे तक इंतजार करती रही पर बस नहीं आई उसकी बस मिस हो चुकी थी और दूसरी बस आ भी नहीं रही थी । परेशान हो गई सुहानी और रात भी होने वाली थी ।
फिर वही कार आकर रूकी डाक्टर शेखर ने जिद की "चलिए मैं ड्रॉप करता हूँ आपको ये इलाका बहुत खराब है रात को यहां रूकना सही नहीं "
मजबूरन सुहानी कार में बैठ गयी ।

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फिर गाड़ी  तेजी से दौड़ने लगी हवा के झोंके से सुहानी के लट गालों से खेलने लगे । चुपके से शेखर ने देखा उसे ये आवारा लट पर बड़ा गुस्सा आया!
 उसने सुहानी के चेहरे को ढक रखा था । मगर फिर भी आधा चेहरा दिख रहा था बेहद हसीं और प्यारी लग रही थी सुहानी ।

सुहानी केवल सड़कों को देखती जा रही थी ।
"सुहानी आप इतना क्यों डर रही हो ,क्या मैं कोई शेर हूँ जो आपको खा जाऊंगा ?"
शेर नहीं हो तो क्या शेर से कम भी नहीं हो सुहानी ने ये अपने मन में कहा ।
नहीं डाक्टर शेखर मुझे डर नहीं लगता है बस बहुत कम बोलती ।
शेखर -"ओके सुहानी जी "


फिर सुहानी के घर के सामने गाड़ी रोकता है शेखर तो सुहानी को हैरत होती है मगर वो इस बात को सर से झटक देती है ।
गाड़ी से उतरते वक्त सुहानी ने शिष्टाचार का पालन करते हुए पूछ लिया -"आइये मेरी मम्मी के हाथ की चाय पी लीजिए फिर जाइएगा! "
शेखर फौरन ही तैयार हो गया ऐसा लगा वो इसी इंतजार में था । गुस्सा तो आया सुहानी को पर मन मारकर घर के अंदर ले गई ।
जब बरामदे में सुहानी ने कदम रखा तो देखा कि ..


क्रमशः

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