मधुशाला, 


प्यास तुझे तो, िवश्व तपाकर पूणर् िनकालगा ूँ हाला, 

एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, 

जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, 

आज िनछावर कर दँगा ू मैंतुझ पर जग की मधुशाला।।२। 



हरिवंश  राय  बच्चन

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