मधुशाला

मधुर भावनाओं की सुमधुर िनत्य बनाता हँूहाला, 

भरता हँूइस मधुसे अपने अंतर का प्यासा प्याला, 

उठा कल्पना के हाथों से ःवयं उसे पी जाता हँू, 

अपने ही में हँू मैंसाकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।

हरिवंश  राय  बच्चन

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