मधुशाला

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, 

किव साकी बनकर आया हैभरकर किवता का प्याला, 

कभी न कण-भर खाली होगा लाख िपएँ, दो लाख िपएँ! 

पाठकगण हैंपीनेवाले, पुःतक मेरी मधशाला।।४। 


हरिवंश  राय  बच्चन

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