सुन कलकल छलकल मधुघट से गिरती प्यालों में हाला, 

सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहंचेु, दर नहीं कुछु, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।

हरिवंश  राय  बच्चन

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