*ग़ज़ल* *इस दुनियां को मैं जुल्म का बाजार लिख दूं,* कलम को ही सबसे बड़ा हथियार लिख दूं। *जहरीली सियासत को घटिया कारोबार लिख दूं,* तू कहता ...
*ग़ज़ल* *हौसलों के सहारे जीत लड़ता कौन है।* दोस्त हो गए दुश्मन,ऐसे डरता कौन है।। *हर शख़्स ढूंढें है, ऊंची हवेली का साया।* अब बुजुर्गों का...
ग़ज़ल अब हम भी कुछ जरा बेहतर लिखते है, तभी तो सोने को पीतल मोम को पत्थर लिखते है। फरेब मक्कारी साजिश होती रहती है, तभी तो हम हाथों में उनक...
ग़ज़ल अब हम भी कुछ जरा बेहतर लिखते है, तभी तो सोने को पीतल मोम को पत्थर लिखते है। फरेब मक्कारी साजिश होती रहती है, तभी तो हम हाथों में उनक...