*ग़ज़ल*
*इस दुनियां को मैं जुल्म का बाजार लिख दूं,*
कलम को ही सबसे बड़ा हथियार लिख दूं।
*जहरीली सियासत को घटिया कारोबार लिख दूं,*
तू कहता है कैसे तुझको रियासत का सरदार लिख दूं।
*दगा देने वाले फरेबी मैं तुझको मक्कार लिख दूं,*
लहू में डूबी स्याही को कैसे मैं पाक़ीज़ा अख़बार लिख दूं।
*तेरी सारी चापलूसी को मैं बेकार लिख दूं,*
अमीरों के दोस्त को मैं कैसे गरीबों का यार लिख दुं।
*साखो के उल्लू को में सियासत का बाजार लिख दूं,*
तेरे कारनामें को देख सिर्फ तुझे मैं गद्दार लिख दुं।
*अमन फेलायेगा तो तूझे मैं अमन का पैरोकार लिख दूं,*
शाहरुख़ वफा दिखती नहीं, उसमें कैसे मैं वफादार लिख दुं।
*शाहरुख मोईन*
अररिया बिहार
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