ग़ज़ल
अब हम भी कुछ जरा बेहतर लिखते है,
तभी तो सोने को पीतल मोम को पत्थर लिखते है।
फरेब मक्कारी साजिश होती रहती है,
तभी तो हम हाथों में उनके खंजर लिखते है।
कतरे को दरिया कहे है दुनियां सारी,
रब की रज़ा को हम समुंद्र लिखते है।
मुफलिसी ने समेटे रखा मुझको दायरों में,
जख्मों को कुरेद के ही बातें बेहतर लिखते है।
आलम ये मेमना बन के जी रहे है लोग,
जहरीली सियासत को हम अजगर लिखते है।
दर्द जो लिखता हूं गरीबों के, पढ़ के खुश है सब,
जालिम दुनियां कहती है हम पीकर लिखते है।
शाहरुख छोड़ो ना उम्मीदें ये तो फर्क है,
कागजों पे दर्द हम बहुत सहेजकर लिखते है।
शाहरुख मोईन
अररिया बिहार
9534848402
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