समय का खेल . . .


न गम है अब मेरे साथ,
न खुशी है अब मेरे साथ।
जो भी थे मेरे साथ तब,
जब में खिलता गुलाब था।।

समय ने क्या से क्या, 
हमें बना दिया आज।
जब वो नहीं है मेरे साथ,
सिर्फ यादे ही है उनकी।

जिन के सहारे जीता, 
चला जा रहा हूँ।
और अपनी किस्मत पर,
बिना वजह ही रो रहा हूँ।।

जिंदगी भी हमे क्या,
खेल खिलाती है।
कभी अपनो को मिलती है,
कभी अपनो से दूर करती है।

और समय चक्र को,
इसी तरह से घूमा रहा है।
और सभी को जिंदगी का, 
असली चेहरा दिखा रहा है।।


Sanjay Jain

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