दुनिया का मेला . . .

दुनिया के मेले में
हर कोई अकेला हैं।
हैं बहुत भीड़ पर
इंसान अकेला हैं।
फिर भी अपनो को
भीड़ में ढूँढ रहा हैं।
जबकि उसे पता हैं
आना जाना अकेला हैं।
ये दुनिया का मेला भी
एक बड़ा झलेमा हैं।।
मेले में रिश्ते बनाते हैं
और उनको निभाते हैं।
कभी रिश्ते बचाते हैं
कभी खुदको बचाते हैं।
पर मेले के झमेले में
अपने ही खो जाते हैं।
फिर न रिश्ते रहते हैं
और न अपने रहते हैं।
रह जाता है तो सिर्फ
दुनिया का एक मेला।।
रिश्तों को दिलो में
जो सजाकर रखते हैं।
वो चाहे भीड़ हो या
दुनिया का मेला झमेला।
पर अपनो को दिलसे
निकाल नहीं पाते हैं।
और अपने रिश्तों को
दिल से निभाते हैं।
लेकिन दुनिया के
मेले में वो अकेले हैं।
वो बहुत अकेले हैं।।

Sanjay Jain

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