शिष्टाचार . . .

सुबह सवेरे जल्दी उठना
उठकर प्रभु का स्मरण करना
बड़ों  के चरणो में नित्य प्रणाम
यही कहलाता शिष्टाचार
विदयालय को मंदिर माने

गुरुओं में ईश्वर पहचाने
शत्रु को दें मित्र का प्यार
यही कहलाता शिष्टाचार
रोतो को भी सदा हँसाए

दूजे के दुःख को अपनाए
कभी ना भूलें हम उपकार
यही कहलाता शिष्टाचार
वाणी में हो अमृत जेसे

शिवालय सा तन हो जेसे
मान अपमान से ना हो दरकार
यही कहलाता शिष्टाचार
मातृभूमी के लिए प्रेम हो

धर्म पे ना मतभेद हो
भाषा का तोल ना मोल हो
भारत का सम्मान हो
यही कहलाता शिष्टाचार


 Rekha Jha

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