Read A Poetry - We are Multilingual Publishing Website, Currently Publishing in Sanskrit, Hindi, English, Gujarati, Bengali, Malayalam, Marathi, Tamil, Telugu, Urdu, Punjabi and Counting . . .
सोच सोच कर रो रहा हूँ अपनी करनी पर। कैसा वक्त आन पड़ा अब सबको रोने को।
चारो ओर मची है अब मंहगाई की मार । फिर भी कहते थक नहीं रहे अच्छे दिन आगये इस बार।।
कहा से चले थे कहा तक आ पहुंचे। क्या इससे भी ज्यादा अच्छे दिन अब आयेंगे।
जब मध्यमवर्गी लोगों को घर में भूखे ही मरवायेंगे। वैसे भी कौन करता परवाह इन मध्यमवर्गी परिवारों की।
न तो वोट बैंक होते है ये और न होते है आंदोलनकारी। फिर क्यों करे चिंता सरकारे मध्यमवर्गी परिवारों की।।
फंड मिलता है अमीरो से और वोट मिले गरीबों से। हाँ पर टैक्स सबसे ज्यादा देते ये ही मध्यमवर्गी परिवार।
जिस पर यश आराम और राज करती है देश की सरकारें। सबसे ज्यादा अच्छे दिनों में लूट रहे मध्यमवर्गी परिवार। जाॅब चलेंगे नये नहीं है
और हुए युवा देश के बेकार। फिर भी अच्छे दिन कहते-२ थक नहीं रही देश की सरकार। हाय हाय अच्छे दिन
हाय हाय अच्छे दिन लेकर आ गई जो सरकार।। राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट। *** अब आगे किसने देखा है ये मौका न जाये चूक। जितना शोषण हो रहा मध्यमवर्गी परिवारों का।
इतना पहले नहीं किया पहले की सरकारो ने। मध्यमवर्गी परिवारों का फंड लूटा रहे अमीरो को।
और मुफ्त में बांटे जा रहे वोटो की खातिर गरीबों में। पर कृपा दृष्टि नहीं होती इन मध्यमवर्गी परिवारों पर।
कुछ तो अब शरम करो अपनी कहनी करनी पर। कबतक जुमले छोड़ते रहोंगे सत्ता में बने रहने को।
क्या कहकर सत्ता में आये थे और कबतक सत्ता में रहोंगे। प्रजातंत्र में अपनी करनी का फल तुम भी आगे भोगोगे।। Sanjay Jain
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें