कहते तो सब है
मै बुरा हूँ,मतलबी हूँ

मै चाहता हूँ
एक हैवान खुद में
जो नोचे, जो मारे

मेरे अंदर के उस
अकेलेपन को भारीपन को
जो खाता रहता है,

मुझे अंदर हीं अंदर
दिमक कि तरह
जो खोखला करता है,

जो रोकता है,मुझे
इंसान बनने से, रोकता
है आँखों कि दहलीज

से वो जो पानी हो गया है,
जो किसी कि याद में,
किसी कि सोच में निकलना

चाहते है,सुखी पलकें
भिगोना चाहता हूँ 
अपने अंदर के दर्द को

बांधकर फेखना चाहता हूँ
उस काली नदी में
जिससे कभी लौटकर ना आये 


Pradeep Chauhan

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