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मिसरे किसी के और मतला किसी का है |
मेरी ग़ज़ल में जख़्म मेरी आशकी का है ||

यूँ ही सरे बाजार मुझे नीलाम कर दिया |
जिसने खरीदा प्यार से,ये बंदा  उसी का है ||
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धूप से  झुलसा है वो ,साया के बावजूद |
खेल देखो वक्त की रस्साकसी का है ||

करने लगे हैं ख़्वाब ,हकीकत की मुखबिरी |
इरादा नहीं जीने का ,अब ख़ुदकुशी का है |
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परिंदों को नहीं आती है ,घोसलों की याद |
आवारगी का जश्न हुआ हँसी ख़ुशी का है ||

दिल के करीब जुस्तजू की दुकान थी |
ताला लगा हुआ मिला वहाँ वेबसी का है ||

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Pradeep Kumar Poddar
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