क्यों मैं सोलह सिंगार करूं . . .

बता दो कब आओगे पिया,
तुम गए किस देश पिया,
मैं तो बस तेरी राह तकूं,
क्यों मैं सोलह सिंगार करूं।

तन्हा रातें मेरी, दिन सूना,
अब तो हुआ, तेरा इंतजार भी दूना,
सारी रात में बस, तारे ही गिनूं
क्यों मैं सोलह सिंगार करूं।

सखियां छेड़तीं, जब तब मुझको,
क्या मेरी याद भी ना आए तुझको,
बता कितने दिन और धीर रखूं,
क्यों मैं सोलह सिंगार करूं।

बीती जाए उम्र विरह में,
मैं तो जलती बस चांदनी में,
अब किससे मैं अपने पीड़ कहूं,
क्यों मैं सोलह सिंगार करूं।

बीता बरस, अधूरी रही प्यास,
कब आएगा अपना मधुमास,
कब तक बस तेरी तस्वीर तकूं,
क्यों मैं सोलह सिंगार करूं।

Pradeep Kumar Poddar

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