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जब मेरा जन्म हुआ था तब बुआ की उम्र थी 25। खानदान में दूसरी पीढ़ी का में पहला चिराग था। इसलिए खानदान में हर्ष उल्लास बहुत हुआ था।
क्योंकि जमीदार के यहां पुत्र का जन्म हुआ था। इसलिए गाँव में और रिश्तेदारों में खुशियां आपार थी।। समय गुजरता गया मैं बड़ा होता गया।
दादादादी नानानानी बुआ चाचाचाची आदि सबसे प्रेम मिलता था। परन्तु पिताजी की गोद कभी नहीं चढ़ सका।
क्योंकि वो जमाना शर्म लज्जा संस्कारो के साथ बड़ो को इज्जत देने वाला था।। मांगे मेरी सब पूरी की जाती थी पर पूरी करने वाले
मेरे पिता नहीं होते थे। ये बात नहीं थी कि पिताजी प्यार नहीं करते थे। परन्तु उस समय की मान मर्यादाओं के अनुसार चलते थे। जिसके कारण ही संयुक्त परिवार चलते थे।।
डरता नहीं अगर पिताजी से उस जमाने में। तो आज इस शिखर पर नहीं पहुँच सकता था। और हिंदी साहित्य के लिए इतना आदर नहीं रख पाता। ये सब दादा दादी नाना नानी और परिवार के संस्कारो का ही परिणाम है।। पर आज के हालात बहुत अलग है
जिसमें मान मर्यादाओं और संस्कारो का अभाव है। जिसके चलते ही बाप बेटा साथ बैठकर पीते है। और नशा हो जाने के बाद एक दुसरो को गालियां देते है। और अपनी खानदान को
सड़क पर नंगा कर देते है। और आज के लोग इसे मॉडर्न जमाना कहते है।। जय जिनेन्द्र देव
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