किसे अपना समझे . . .
मिले जब गैरो से प्यार,
और अपने समझे बेकार।
तो ऐसी स्थिति में हम,
किसे अपना समझे ?
जब अपने ही अपनो को, 
लौटे जा रहे हो ।
और फिर भी एहसान
वो जताये जा रहे हो।
तो ऐसो को अपना कहना,
बड़ी भूल ही होगी।।
परायें तो परायें है,
फिर भी इंसानियत दिखाते है।
पर अपने सदा अपनो को, 
बड़े ही प्यार से डसते है।
और फिर भी अपनापन,
कहकर जताते है।
और इंसानियत का फर्ज तो 
गैर ही निभाते है।।
कैसे समझे परिभाषा,
अपने और परायों कि।
समझ में कुछ आता नही,
की कैसे करे मूल्यांकन हम इनका।
लोगों की करनी और कहनी में,
बहुत ही अंतर होता है।
क्योंकि चेहरा देखकर ही
मूल्यांकन आजकल होता है। 
और जमाने की सच्चाई को,
हमेशा ही छुपाया जो जाता है।।
अपने परायो को क्या 
कोई आजकल समझ पाया है।।
Sanjay Jain

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