कल आज और कल . . .

विधा: कविता
एक वो जमाना था 
जिसमें आदर सत्कार था।
एक ये जमाना है 
जिसमें कुछ नहीं बचा।

दोनों जमाने में यारो
अन्तर बहुत है।
इसलिए तो घरों में 
अब संस्कार नहीं बचे।।

एक बाप छ: बच्चों का
पालन पोशण कर देते थे।
और छ: बच्चे मिलकर
मां बाप को नहीं रख पाते।
और उन्हें बृध्दाश्रम में छोड़कर 
अपना फर्ज निभाते है।

और समाज में अपनी 
नाक ऊंची करते है।।
यही काम माँ बाप ने 
बच्चों के साथ किया होता।
और यश करने के लिए तुमसे मुंह मोड़ लेते।

और छोड़कर पालनघर में
अपना फर्ज निभाते।
तो क्या आज तुम 
इस मुकाम पर पहुंच पाते।।
कितनी सोच का अंतर
तब अब में हो गया।

रिश्तो में भी मिठास 
अब वो कहा रही।
ये सब कुछ आज की चकाचौंध का असर है।
तभी तो बच्चे मांबाप को अपने से दूर रख रहे है।।
हमें अब दिखाने लगा है

दायित्वों कर्तव्यों का अंतर।
इसलिए तो खुदके बच्चो को भी आया पाल रही है।
तो फिर कैसे दिलमें रहेगा
मांबाप के लिए अपनापन।
इसलिए बड़ेबूढे कह गये है
जो बोया है वही तो काटोगे।

और खुदको भी आश्रम में 
अपने मांबाप की तरह पाओगें।।
जय जिनेन्द्र देव 


Sanjay Jain

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