मगर आज पर्दा . . .

निगाहों में आँसू, छुपाना पड़ेगा  
वो आएँगे तो ,मुस्कुराना पड़ेगा  

ख़तावर नहीं हम, ये सबको पता है  
मगर  सर कदम पे, झुकाना पड़ेगा  

कहीं रूठकर वो न आये इधर तो  
हमें जा के उनको, मनाना पड़ेगा  

किए चाक दिल जो सरे राह देखो  
कलेजे से उनको लगाना पड़ेगा  

हकीकत से वाकिफ नहीं जो यहाँ पर 
उनहें ख्वाब से फिर जगाना पड़ेगा    

हुकूमत से इंसाफ पाने के खातिर  
कातिल को मुंसिफ बनाना पड़ेगा  

भले टूट जाये यहाँ दिल का शीशा  
मगर आज पर्दा, हटाना  पड़ेगा

Pradeep Kumar Poddar

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