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ए माँ ,मेरी कविता मुझे तुझ सी ही लगती है, तू मुझमे छुपी माँ की मूरत का ही अक्स लगती है। मेरी रूह की आवाज बन कविता गायन करती है। मेरे सोच ,दृष्टिकोण को तराश मुझे राह दिखाती है।
थक हार कर बैठती हूँ तो अपने आँचल में समा लेती है। दीन दुनिया को भूल कुछ पल सुकूँ से बिता पाती हूँ।। मन की अनकही सब कविता सुन लेती है। मेरी व्यथा को शब्दों में मुखरित कर देती है।
माँ की तरह कविता हर गम हर शिक़वा हरती है। रोज कविता मुझे पुनः पुनः ऊर्जावान बनाती है। जिंदगी की जीने की कला ओ संस्कार सिखाती है। कवितामाँ की तरह सत्कर्म की राह चलाती है।
पिता की तरह कविताओज,तेज भरती है। हरदम साथ रहकर, दुःख दूर करती है। भाई की तरह हर पल खुश रहने को कहती है। बहन की तरह मुझे हँसाती ओ खिलाती है।
मेरी कविता मेरी सच्ची,अच्छी सहेली बनती है। मेरी कमियों को दूर कर सही राहसिखाती है। कविता प्रियतम सी आगोश में ले बहलाती है। परिवार की तरह कविता मेरी शख्सियत सँजोती है।
कभी भागीरथी बन पावन भाव धारा में बहाती है। दीपशिखा सी अन्तस् के तमस को भी जलाती हैं। सुरभित समीर सी कल्पनालोक में उड़ाती है। हर रंग हर रूप में कविता जीवन संगिनी बन जाती है।
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