रात बढ़ने लगी है

रात बढ़ने लगी है।
    कुमुदिनी खिलने लगी है।
चकवा चकवी बिछुड़ते हैं
     विरह की आग में जलते हैं।

ज्यूँ रात बढ़ने लगी हैं।
   मन की जलन बढ़ने लगी हैं।
देह तपन बढ़ने लगी हैं।
      चकवी विरहन तड़पने लगी हैं।

रात बढ़ने लगी हैं।
  प्रीतम को पुकारने लगी है।
विरहिणी सुलगने लगी हैं।
देहमनप्राण से पिघलने लगी है।

दुःख की रात बढ़ने लगी हैं।
    उम्मीदों को बढ़ाने लगी है।
दर्द की दवा की चाहत बढ़ी हैं।
    विरह की मारी पल पल जली है।

सरहद पर तैनात सैनिक है।
   कठोर ठंड से ठिठुर रहा हैं।
सूक्ष्म देह अणु कंप रहे है।
     बैरन रात बढ़ने लगी हैं।

फौजी मरुस्थल में निगरानी करे।
   रेतीले धोरों पर  ही विचरे।
दिन भर की कठोर दिनचर्या।
   दुःख भरी रात क्यों बढ़ने लगी है

जवान बेटा घायल हुआ पड़ा हैं।
   दर्द से वो कराह उठता है।
माँ बाप बेटे की पीड़ा से रोए।
   दर्द भरी  रात क्यों बढ़ने लगी हैं।

सुख के दिन रात न जाने क्यों।
    बीत जाते बहुत जल्दी क्यों।
दुःख पीड़ा विधवा जीवन की क्यों
    विरह की रात बढ़ने लगी हैं।

गरीब भूखे पेट आज है सोया।
    पानी पीने से भी चैन न पाया।
भूख से आंते बिलबिलाने लगी है।
     भूख भरी रात बढ़ने लगी है।

Neelam Vyas

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