आज दुआरे दीप जलाओ . . .

घर आंगन सारे जगमगाओ
प्राणप्रिय रामलला पधारे
युगो युगो अभी यहीं विराजें
वो वनवास था चौदहवर्षीय

ये बनवास बरसो काट आए
 विरह की घड़ियां लो गई बीत
दुख संताप सारे गए जीत
बाट जोहत अखियां भई हर्षित

 देख राम हुई विकल पुलकित
 सुंदर स्वरूप सिया संग लागे
 आज अयोध्या पुनः राम अवतारे
सालों का संघर्ष भयो पूर्ण 

हे राम तेरी लीला अक्षुण्ण
 दीर्घ प्रतीक्षा पीड़ादायी कतिपय
पीढ़ियाँ गुजरी चिंतित संशय
उल्लासित सपने हुए अधीर

 दिव्य मुखमंडल नयन्न तीर
तुलसी माल गले मुकुट पे हीर
 तन पर साजे पितांबर चीर 
 देख दिव्य रूप हिय जुड़ाए

 रघुकुल के रघुनंदन घर आए
 आज अयोध्या के भाग्य जागे
 चरण कमल स्पर्श भू पा़ए
धन्य हुई यह मिट्टी दुबारा

 प्रस्फुटित हुई सदियों की धारा
त्रेता युग मानो है आया
 संग मर्यादा पुरुषोत्तम लाया
भाव विभोर हुए मन न्यारे

 हर्षतिरेक  हुई दिशाएं सारे
 उत्सव उमंग जग जहां लागे
 मंगल गीत गूंजे गलियाँ  द्वारे
अभिनंदन को आतुर अंजन ये

 प्रफुल्ल प्रगाढ़ प्रखर प्रेमवंदन ये
 धैर्य तनिक ना धरा जाए
 सूनी अयोध्या बलइयाँ उतारे
 माँ कौशल्या के लल्ला आए

 आह्लादित मातृभूमि कृतज्ञ हुई जाए 
अवध के अवधेश  लौट‌ आए 
 जगत कल्याण को जन्म है पाए
नर नारी बच्चे वृद्ध यवन 

तुलसी के राम  देखें मनभर
 बाल्मीकि के आराध्य निज भगवन 
तुम हो वेद पुराण सब ग्रंथन
भूल हमारी प्रभु क्षमा करना

अब कभी ना विलग हमसे होना
प्रफुल्ल आत्मा करजोड़ करें विनती 
शरण तुमहारे उमर जाए मोरी बीती

Geeta Kumari

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