कुछ पल प्राकृतिक के स्वर्ग में . . .
बारिश का मौसम आ चुका है।
आकाश में इन्द्रधनुष बन रहा है, बड़ा ही मनमोहन दृश्य है।
चारों ओर हरियाली छायी हुई है, हरियाली ने पर्वत को ऐसे लपेट लिया है जैसे कोई मां अपने छोटे बेटे को आंचल में छुपा लेती है।
आह! बहुत सुंदर वातावरण और अनुकूलित वातावरण है,
सच में प्रकृति से ज्यादा सुंदर कुछ नहीं।
इस दृश्य को देखकर मृत में भी जीवन का संचार हो जाये।
पंक्षियो की चहचहाहट ये बता रही है कि वे कितने आमोद से भर गये हैं।
यहां तो अमोद का अन्त ही नहीं।
किसी ने सत्य ही कहा है "धरती में ही स्वर्ग है।" और ये स्वर्ग हमने आंखों से देख लिया है।
पर्वतों के बीच में छोटी सी झील हमारा ध्यान आकर्षित कर रही है, इसमें तैरते कमल के पुष्प और उन पुष्पों पर भौरों का मंडराना।
बहुत अच्छा लग रहा है यों लगता है कभी- कभी यहीं रह जायें । और प्रकृति के साथ और प्राकृतिक वस्तुओं के साथ जियें।
इस पर्वत में औषधियों की भरमार है।
इतना देखने के बाद हम घर लौटना चाहते थे क्योंकि शाम हो रही थी और बारिश का मौसम था।
इसलिए वहां से हम घर आ गये और उन्हीं लम्हों को हम सोचते रहे कि कब फिर वही मनमोहक दृश्य देखने जायेंगे।
बस यही सोचते-सोचते बारिश का मौसम गुजर गया और इसी प्रकार एक वर्ष बीत गया।
समय न मिल पाने के कारण हम दोबारा वहां नहीं जा पाये।
मैं इस बार समय निकालकर फिर प्रकृति के बीच या यों कहें प्रकृति का स्वर्ग देखने जायेंगे और इस बार वहां कुछ रात गुजारेंगे।
पूरी पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।।
मैं इस कहानी के माध्यम से लोगों से
अपील करता हूं कि प्रकृति के साथ
छेड़खानी न की जाये, और अधिक मात्रा में पेड़ लगायें।
कहानी लेखक-कविराज अनुराग मौर्य
नोट - कहानी में जो मुझे प्राकृति की गोद में आनन्द प्रतीत हुआ उसे ही बताया गया है।
यह कहानी सच्ची है।
कुछ बढ़ाकर वर्णन किया गया है
Anurag Maurya
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