तुम अविनाशी आत्मा
    तुममें बसे बैठेहै परमात्मा
सूर्य की तरह अटल रहना
     चन्द्रमा सेअमृतोपम बनना

ब्रह्मांड के शक्ति पुंज हो तुम
     रस के अक्षय स्त्रोत हो तुम
भय न मन में कोई पालना
      जगती सुख दुःख तो छलना।

कर्म गति अविगत,अविराम
     कर्मों से जीवन को साधना तुम
करो अनुभव आत्मा दूर भय चिंता
     मुसीबतों,दुख दूर हो जाता।

आत्मा अजर ,अमर है बन्धु
     कोई हानि नहीं पहुंचा सके बन्धु
जो आए सम्मुख  भगवद स्वरूप
      करो सेवा सदा उसी के अनुरूप

संसार की चिंता तुम्हारा कर्म नहीं
    विधाता की लीला पेजोर हैं नहीं।
सर्व स्वीकार ,सर्व समर्पण करो।
     जो मिला उसेअटूट प्यार करो।

जो सम्मुख हैं वही किस्मत में है
     जो मिल न सके चाहना नहीं है।
प्रातः ध्यानानन्द पा पान करो।
      खुद से आत्म परिचय करो।

बहुत भटक लिए जग में तुम,
       खुद से साक्षात्कार करो तुम
आत्म चिंतन,मनन करो तुम।
     समष्टि में व्यष्टि को मानो तुम।

मन की गहराइयों में उतरो तुम।
    नाभि चक्र सोपान पार करो तुम
अकर्त्ता ,अकर्म स्वीकारो तुम।
     अहम भाव को तजो अबतुम

हृदय में प्रेम तत्वों को भरो तुम।
    अपने खुदा से प्रेम करो तुम।
पिया खुदा मान चाहो उसे तुम।
    मित्रा कोई उम्मीद न रखो तुम

प्यार करना है प्रतिदान न चाहो
    मित्रा की मजबूरी पहचानो।
आओ खुद को ढूंढने चले हम
    अनसुलझे हल सुलझा ले हम।

गुत्थी उलझी हुई चाहना की
    निःस्वार्थ प्रिय को चाहो तुम।
प्रतिदान की उम्मीद न रखो।
    मिलेगा किस्मत से भरोसा रखो।

जो गया वो मेरा नहीं यहाँ
    मिला नहीं किस्मत में नहीं यहाँ
सहज ,सरल बन जाओ तुम।
     होनहार को नमस्कार करो तुम।

सकारात्मक  भाव जगाओ तुम।
    क्रोध ,द्वेष ,कुंठा मिटाओ तुम।
हे प्रभु,,सर्व समर्पणभाव।
    हे दाता,, रहम भाव।

हे जीवन,,तुम्हें प्रणाम।
    हे जगति,, त्राहिमाम।
कर्म करो ,ध्यान धरो
इत उत न भटको।

प्रातः नमन करो।
   प्रातः मनन करो।
ॐ नमः शिवाय
हरि ॐ तत्सत।
ओमकार
प्रणवाक्षर

Neelam Vyas

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