नीलाम्बर ,सुरमई आँचल बिखेरे।
गहरे तो कही हल्के नीले है घनेरे।
कही कही कालिमा सुबह सवेरे।
पयोधर चले लेने धरा से सात फेरे।

कही ओस बूंदों,कही तुषार लिए।
कही तुहिन कण समेट खुद मेंलिए
बादल राजा बनठन सँवर चल दिए
उमड़ घुमड़ कर असीमता वो लिए

रुई के फाहों से ,धवल ,उज्ज्वल से
सूरज की किरणों से चमकते  फिरे
किसानों की करुणाई निज भरे भरे
बरसने चले  घन गरीबों के मोह भरे

विश्व के निदाघ से व्याकुल चले ,,
सफेद ,चाँदी सेजगमग घन चले।
नभ राजा सफेद चादर ओढ़ चले।
वो बादल बारात लेकर चले।।

पर्वत प्रदेश में पावस के पयोधर ।
हिमपर्वतों के ऊपर घने श्वेत पर।
धरा की उमस से पिघल पिघल कर
सावन के बादल आए उमड़  कर।

पर्यावरण चक्र संतुलित करने को।
सागर नदियां जलवाष्प मेंढलने को
संघनित जलवाष्प ठंडक भरनेको
जलवाष्प चला बादल रूप लेने को

किसान ,खेतिहर की पुकार सुन।
गर्मी से दुःखीजन के स्वर गुन।
चले बादल भावुक देने सुकून।
प्रेयसी धरा की प्यासी सुनी धुन।

भर भर आए बदरा बारिश करने।
अन्न धन,फल फूल,हरियाली देने।
धरा को अन्न जल से परिपूर्ण करने
नील वितान के घटाटोप घन घने।।

बादल से बादल जब टकराए।
गड़गड़ाहट से धरा गूँज जाए।
बिजली चमक से रोशन होजाए।
उजला उजला नभ मंडल हो जाए।

कोकिल ,कीर,पपीहे की पुकार से।
कजरी गीतों,सूखे खेत हुए प्यासे।
झर झर मूसलाधार बरसने आस से
घिर आए बदरा बून्द बून्द सरसाते

विनम्र व्योमकेश भेज रहा है।
बादलों को बरसने भेज रहा है।
जन जन हरषा,सरसा रहा है।
प्रेयसी भू मिलन वारिद आ रहा है।

प्रकृति के कैनवास पर उजले ।
श्वेत श्याम रंग बिखरे बिखरे।।
स्लेटी,काले रंग की किनारी सजे।
चित्र  नील वितान पेश्वेत घन के।

Neelam Vyas

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