तेरी बेचैनी सी आंखों में
एक नजर जो मैंने फेरी थी
एहसास हुआ पल भर ही सही
तु अब भी शायद मेरी थी
तु अब भी शायद मेरी थी....

मुझे देखते ही तेरे होंठों पे
कुछ क्षण जो तब्बसुम बिखरी थी
अलफ़ाज़ तेरे होंठों से पड़े
कुछ कहने को उत्कंठित थी
एहसास तेरा वो कहता रहा
तु अब भी शायद मेरी थी
तु अब भी शायद मेरी थी.....

सावन की घटा घनघोर छटा
बिजली चम-चम-चमके गरजे
उसपर ये तुम्हारी गीली बदन
फिर जुल्फ़ तेरी मुझसे उलझे
हर साँस तुम्हारी कहती रहे
तु अब भी शायद मेरी थी
तु अब भी शायद मेरी थी....


Mandvi Kashyap

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