* वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है. वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है. वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर निर्भर है.

* A man who encounters the following three is unfortunate; the death of his wife in his old age, the entrusting of money into the hands of relatives, and depending upon others for food.


* यह बाते बेकार है. वेद मंत्रो का उच्चारण करना लेकिन निहित यज्ञ कर्मो को ना करना. यज्ञ करना लेकिन बाद में लोगो को दान दे कर तृप्त ना करना. पूर्णता तो भक्ति से ही आती है. भक्ति ही सभी सफलताओ का मूल है.


Chanting of the Vedas without making ritualistic sacrifices to the Supreme Lord through the medium of Agni, and sacrifices not followed by bountiful gifts are futile. Perfection can be achieved only through devotion (to the Supreme Lord) for devotion is the basis of all success.


एक संयमित मन के समान कोई तप नहीं. संतोष के समान कोई सुख नहीं. लोभ के समान कोई रोग नहीं. दया के समान कोई गुण नहीं.

There is no austerity equal to a balanced mind, and there is no happiness equal to contentment; there is no disease like covetousness, and no virtue like mercy.


क्रोध साक्षात् यम है. तृष्णा नरक की और ले जाने वाली वैतरणी है. ज्ञान कामधेनु है. संतोष ही तो नंदनवन है.

Anger is a personification of Yama (the demigod of death); thirst is like the hellish river Vaitarani; knowledge is like a kamadhenu (the cow of plenty); and contentment is like Nandanavana (the garden of Indra).

Chanakya Neeti

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk