हम सभी आज कतार में हैं
कुछ किनारे,कई बीच मझधांर में है
कुछ नरक,कई स्वर्ग के द्वार में है
कुछ मौत,कई जिंदगी की तलाश में है
कुछ सुधार,कई बिगाड़ में है
कुछ घरों, कई अस्पतालों में हैं
कुछ मजे,कई परेशानी में है
वायरस फैला पुरे संसार में है
कुछ फैलाने,कई बचाव में है
मानव आज इस मुकाम में है
परिंदे आज खुले आसमान में है
मानव आज भी अभिमान में है,
रूक जाओ कुछ दिन तुम घरों 
में वरना यमराज भी आज रफ्तार में है

~ प्रदीप चौहान

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