तुम बिन जीवन लगे  सूना ओ कान्हा।
दिवस बीते जल जल कर नित कान्हा।


रात को पूनम चाँद जलाएकान्हा।
सेज लगे बैरन अंगार मोहे कान्हा।


ये हवा शीतल  अब नहीं लगती कान्हा।
यमुना जल तो पूछे नित तेरा पता कान्हा।


कुंज निकुंज बैरन लागे मोहे कान्हा।
वृक्ष लता बेजान सी मोहे लागे कान्हा।


भूल गयी घर के काम काज हम कान्हा।
नियम धर्म बिसराये दिए कबके कान्हा।


दिन रात तड़पत मोरे नैना दरस को कान्हा।
इन अँखियन को कुछ और न सोहे अब कान्हा।


बैचेनी बढ़ती जाती रूह को कसक देती कान्हा।
जी सके न मर ही सके हम अब क्या करे तुम बिन कान्हा।


ऊधो मेरे मन मे तो बस  गए मेरे कान्हा।
भूल न सकू कोई जतन करू विरह जलाए कान्हा।


ओ कदम्ब की डाल ,ओ धेनु ओ ग्वाल,,पुकारे कान्हा।
तुम्हारे विरह में जान अटकी मेरी आ जाओ कान्हा।


मुझ बिरहन का तन हो गया काला ,मुख पीला कान्हा।
रूप ,रंग,रस ले गयो ,प्राण क्यों छोड़े मुझमें कान्हा।


अंत समय मुख छवि देखूँ तेरी इतनी अर्ज मेरी कान्हा।
विरह ज्वाल से मुक्त करो ,प्राण हर लो कान्हा।


तन मन ओ प्रेम भक्ति समर्पित तुझ ओ कान्हा।
मुझ विरहन को दासी समझ भव सागर तारो कान्हा।


मैं अब दूर  रह नहीं पाऊ आकर इक़ बार अंग लगा लो कान्हा।
हृदय कमल में मुझ विरहन को भी शरण दे बस कान्हा।

Neelam Vyas

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