*बात जो भी कहते है सच ही कहते है,*
 गुलाब को तुम फूल हम पंखुड़ी कहते है।


 *ये माना हम तेरी मुहब्बत के  तलबगार नहीं है,*
 फिर भी तुझ को अपनी जिंदगी कहते है।


 *हम नहीं जानते पेचों-रवम इश्क के मगर,*
 इश्क बालो को ही हम आदमी कहते है।


*जल रहा है अब शहर नफरतों के कारोबार से,*
 ऐसे लोगों को हम सियासत के कारोबारी कहते है।


 *हर शिकारी से अव्वल है, एक शिकारी भी अब,*
पल में बदले रुख हवा का, उसे ही बाज़ीगरी कहते है।


 *तेरे नैनो नक्स को तराशा नहीं है हमने,*
 रुह डाले जो पुतलो में मिट्टी के उसे कारीगरी कहते है।


*गुनाह ए मुहब्बत हम भी कभी कभी करते है,*
बातें मुहब्बत की मगर, शहर में बनके अजनबी करते है।


*कितने पागल थे वो लोग, जिसने बुझा ली लौ जिंदगी की,*
शाहरुख़ इसी बात को तो मुहब्बत में खुदकुशी कहते है।

*शाहरुख मोईन*
अररिया बिहार
9534848402

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