समय का पहिया चलता है 
दिन चढ़ता है , दिन ढलता है
रात आती है, फिर सवेरा होता है।
अंधेरी रात ,डरावनी रात
सुनसान सन्नाटा,
कभी कोलाहल वाली रात
ना जाने कैसे कटेगी रात
कितनी लम्बी होती रात

हाय ,अब दर्द असह्य हो रहा
पीड़ा घनेरी , चित्कार मार रही
पर , अब हाँ कटेगी ये रात
हो रही अब ये परीक्षा समाप्त

मेरे प्रभु, कृपालु दीनानाथ 
अब भोर करो, अब कष्ट हरो

नभ में लालिमा छाने को है
उषा किरण आने को है
अब रात देखो हार रही है
देखो भोर आ रही है
सुनहरा सूरज सुबह सजा रहा
किसी की तपस्या को तृप्ति दिला रहा
रोम रोम पुलकित है अब
कि रात गुज़र चुकी है अब 
कि दिन चढ़ चुका है अब

ये दिन विजय लाया है
रात पर विजय , 
अब जीत रहे है मेहनतकश
चमक रहे हैं उनके चेहरे
की उत्साह है अब जीवन में 
की रस भर चुका अब कण कण में
अब तो बस आनंद है
परम आनंद है

Reeta Poddar

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