मन भटक रहा है इधर उधर
जैसे कोई बच्चा माँ से बिछर गया हो
भीड़ भरे बाजार में
एक उम्र बीत गयी,  मेरा वक्त नहीं आया अब तक
जिंदगी बहुत पीछे खड़ी है जैसे किसी लम्बी कतार में
सुनो,  तुम चाय पर आते रहना अपनी टेबल पर
क्या पता!  मैं मिल जाऊं कभी सुबह के अखबार में |


Shivani Kumari

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