इंसान हो . . .


इंसान की औलाद हो, 
इंसान तुम बनो।
इंसानियत को दिलमें,
अपने जिंदा तुम रखो।
मतलब फरोश है ये दुनियाँ,
जरा इससे बचके रहो।

लड़वा देते है अपास में, 
भाई बहिन को।
ऐसे साँपो से तुम, 
अपने आप को बचाओ।।
कितना कमीना होता है, 
लोगो ये इंसान।
सब कुछ समझकर भी,
अनजान बन जाता है ये।

औरो के घर जलाओगें तो,
एकदिन खुद भी जलोगें।
फिर अपनी करनी पर,
तुम बहुत शर्मिदा होगें।
और अपनों की नजरों में, 
खुद ही गिर जाओगें।।

जो अपनो का न हुआ, 
वो गैरो का कैसे होगा।
इंसान की औलाद है,
फिरभी जानवर बन गया।
जानवर तो जंगल में,
हिल मिलकर रहते हैं।

इंसान होते हुए भी, 
जानवरों से भी नीचे गिर गया।
और इंसान कहलाने का, 
हक भी उसने खो दिया।।

Sanjay Jain

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